दलित – कैसे बने यह शब्द जाति के नाम पर विभाजन के रूप में प्रयोग होने लगा।

“दलित” शब्द संस्कृत भाषा से लिया गया शब्द है! संस्कृत में “दलित” शब्द “दाल” धातु से बना है जिसका अर्थ है फूटना, तोड़ना, टूटना, बाँटना इत्यादि, परन्तु भारत की राजनीती में क्यों आया यह शब्द और कैसे बना राजनीती के लिए इतना महत्वपूर्ण और कहाँ से आया यह जाती बटवारा? आइये जानने की कोशिश करते हैं…

भारत के इतिहास में 1880 तक “दलित” जैसे शब्द का जाती के लिए कोई इस्तेमाल नहीं था और न हीं हमारे किसी वेद, पुराण या धार्मिक पुस्तक में “दलित” शब्द का इस्तेमाल था और न आज है फिर भी यह शब्द भारत की राजनीती के लिए बहुत बड़ा मुद्दा है! कहाँ से आया इस शब्द का इस्तेमाल, और कहाँ से आया ऐसा जाती बटवारा जहां उच्च जाती में ब्राह्मण, छत्रिया, बणिये आदि जिनमे ब्राह्मण सबसे उच्च हैं एवं चमार, भंगी दलित जाती जो सबसे नीची जाती है? एवं यह जाती बटवारा केवल सनातन धर्म के लिए ही है! जबकि हमारे सनातन धर्म की धार्मिक पुस्तकों में बताया गया है की क्षत्रियों ने ब्राह्मण को गुरु माना एवं ब्राह्मण ने वाल्मीकि को गुरु माना जो की ना तो क्षत्रिय थे और नाही ब्राह्मण!

भारत में अंग्रेजो का शासन चल रहा था और इस अंग्रेजी शासन की नीव ही डाली गयी थी “बांटो और राज करो” यां “तोड़ो और राज करो”! इसी सोच के चलते अंग्रेजों ने भारत में राजशाही को भांप कर राजाओं को आपस में लाडवा कर भारत पर शासन करना तो तो शुरू कर दिया परन्तु शासन में जिसका सहयोग सबसे ज्यादा ज़रूरी था वो थी भारत की जनता, भारत पर राज करने के लिए भारत की जनता को तोडना या बाँटना बहुत ज़रूरी था जिसके चलते अंग्रेजों ने भारत में धार्मिक मनमुटाव करवाकर धर्म के नाम पर जनता का बंटवारा शुरू किया!

चूँकि भारत में हिन्दू बाहुल्य रियासतें थीं एवं भारत की जनसँख्या का बहुत बड़ा भाग सनातन धर्म का उपासक था और इन्हें धर्म के नाम पर नहीं तोड़ सकते थे और बिना इन्हें बांटे भारत पर राज करना काफी मुश्किल भरा था,इसी समस्या से सफलता के लिए ढूंढा गया एक शब्द “दलित”, जिसका अर्थ है फूटना, तोड़ना, टूटना, बाँटना इत्यादि!

माना जाता है कि महाराष्ट्र में गैर-ब्राह्मण आंदोलन, सत्य शोधक समाज के संस्थापक ज्योतिबा फुले ने “दलित” शब्द गढ़ा था। विलियम हंटर और ज्योतिराव फुले ने 1882 में मूल रूप से जाति-आधारित आरक्षण प्रणाली के विचार की कल्पना की थी और तभी से जातीय बटवारा शुरू हो गया जो की आज बहुत बड़े पैमाने पर है, यह बटवारा केवल हिन्दू धर्म के लिए ही चला आ रहा है किसी और धर्म में आज भी धार्मिक बटवारा नहीं है!

वर्ष 1882 से ही जातीय रिजर्वेशन को आधार बनाकर भारत में राज करने का दौर शुरू हो गया जो आज भी बहुत मजबूती के साथ खड़ा है जिसे आज जातीय अधिकार के नाम से जाना जाता है! भारत में आज “दलित” सिर्फ एक शब्द नहीं बल्कि “दलित समाज” बन चूका है जिसे आसान भाषा में पिछड़ी जाती कहते हैं! “दलित” के नाम पर आज भारत में बहुत बड़ा वोट बैंक है और इन्ही के नाम पर बहुत सारी राजनैतिक पार्टियाँ भी जो खुद को “दलित” समाज का हिमायती बताते हैं!

हमे इसके बारे में चिंतन करने की बहुत आवश्यकता है की कैसे और क्यों अंग्रेजो के समय से शुरू हुई धार्मिक बटवारे की राजनीती आज तक क्यों चल रहि है, क्यों आज भी “दलित” शब्द के नाम पर बहुत बड़ा वोट बैंक और खुद को “दलित” का रक्षक कहने वाले बहुत सारे नेता पैदा हो रहे हैं! जबकि सरकार की तरफ से मुफ्त शिक्षा, अनाज, घर, मुफ्त इलाज आदि दिया जा रहा है जिनमे शिक्षा प्रमुख्य है जो आपको बहुत बड़ा विद्वान बना सकती है और भारत में मुफ्त दी जा रही है उन्हें जिन्हे “दलित” समाज का बनाया गया है! फिर आपकी सोच क्या कहती है……

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