जब बात धर्म पर आए तो हम हिन्दू है एवं जब बात चुनावों में वोट की आए तो ST, SC, OBC, GEN याद आ जाता है की फैलाने ने आदिवासी समाज के लिए कुछ नहीं किया हम करेंगे, कोई ST समुदाय का नेता बनकर खड़ा हो जाता है तो कोई SC का, तो कोई OBC या GEN का नेता बन जाता है फिर सब अपनी पसंद की हुई केटेगरी के विकास की बातें करते है और दूसरी केटेगरी के खिलाफ ज़हर भरने लगते है!
जात पात के मुद्दों को लेकर चुनाव जीतने के बाद ऐसे नेता बस अपने मुनाफे के लिए काम करते है और जब अपनी पार्टी मुनाफा न दे पाए तो यह लोग दूसरी पार्टी में चले जाते है और अपनी पुरानी पार्टी के लिए भला बुरा कहकर नई पार्टी में अपना राजनीति भविष्य बनाने में जुट जाते हैं!
नेता तो अपने ज़हर भरे भाषणों को भूल जाते है जबकि लोगों के मन से जात पात का ज़हर नहीं निकलता! जिसका नुकसान या तो लोगों को उठाना पड़ता है या फिर देश को! नेता लोगों की ना कोई जाती होती है न कोई धर्म होता है, नेता का करियर जहाँ से बने वह उसी धर्म और जाती का होता है और ज़रूरत पड़ने पर वह अपना धर्म और जाती बदल भी लेता है!
चुनाव जितने के खातिर हमें केटेगरी में बांटकर, धर्म के नाम पर एक होने का ज्ञान कैसे दे सकते हैं! जब तक राजनेता केटेगरी सिस्टम को ख़त्म कर समान अधिकार की बात नहीं करेंगे तब तक भेदभाव ख़त्म नहीं होगा! और जब तक हम सब एक समान केटेगरी में नहीं आते तब तक धर्म में एक होने की बात कैसे कह सकते है ये नेता!