भाषा, प्रकृति द्वारा दिया गया मानवता को एक ऐसा वरदान है जिसके बिना मनुष्य की सभ्यता का विकास होना बिलकुल भी संभव नहीं है! अपनी भावनाओं को शब्द का रूप देकर किसी अन्य व्यक्ति तक अपनी भावना को पहुँचाने का सलीका जो हमें प्रकृति से मिला है उसी सलीके को भाषा कहते हैं!
माननीय श्री अरविन्द केजरीवाल जी (दिल्ली के मुख्या मंत्री) नें एक कार्यक्रम चलाया है जिसके तहत अब गरीब का बच्चा भी फर्राटेदार अंग्रेजी बोलेगा! पर क्यों बोलेगा वो अंग्रेजी, उसकी अपनी कोई राज भाषा नहीं है क्या? काबिलियत भाषा में होती है या इंसान में? किसी को क्यों प्रोत्साहित करना है किसी और भाषा सिखने के लिए जबकि उसकी खुद की कोई राजभाषा है जिसका इस्तेमाल करकर वह गर्व महसूस करता है फिर क्यों?
अंग्रेज़ी दुनिया की सबसे ताकतवर भाषा में से एक है, परन्तु यह भाषा इतनी ताकतवर कैसे बन गई की आज दुनिया सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषााओँ में से है, दुनिया ही क्यों हमारे में भी आप किसी भी राज्य में जाओ, सबसे ज्यादा अहमियत अंग्रेजी भाषा बोलने वाले को ही मिलेगी क्यों? अंग्रेजी भाषी देशों के लोग हमारे देश में आकर अपनी ही भाषा में बोलते है और हमारी मज़बूरी है उन्हें समझना क्यों?
हमारे देश में 28 राज्य एवं 8 केंद्र शासित प्रदेश हैं और इनमे इतनी भाषाएं बोली जाती है जिनकी शायद कोई गिनती है नहीं है! इतनी भाषाओँ से संपन्न होने के बाद भी जब हम किसी अन्य देश में जाते हैं तो वहाँ अपने देश की किसी भी भाषा का इस्तेमाल नहीं कर सकते, हमे वहाँ अंग्रेजी का ही इस्तेमाल करना होगा या किसी अन्य विदेशी भाषा का किन्तु भारतीय भाषा का नहीं!
क्यूंकि अंग्रेजो ने अपनी भाषा को प्रमोट किया है, उन्होंने अपनी भाषा को सर्वपरि रखा है, वह अपनी भाषा का इस्तेमाल करने में गर्व महसूस करते हैं! , परन्तु हमने ??
स्वामी विवेकानंद जी ने सारी दुनिया के सामने हिंदी भाषा में भाषण दिया था, जो शायद बहुत कम लोगों की समझ में आया होगा परन्तु फिर भी उनके भाषण को बहुत सारी तारीफ एवं तालियां मिलीं! क्यूंकि स्वामी जी ने अपने देश की काबिलियत को अंग्रेजो के सामने रखा था और काबिलियत किसी भाषा को समर्पित नहीं है! स्वामी जी ने बहुत गर्व से हिंदी भाषा का इस्तेमाल किया था और उसका प्रमोशन उनके भाषण से हुआ था!
जब काबिलियत हमारी है तो भाषा किसी और देश की क्यों? माननीय श्री अरविन्द केजरीवाल जी कृपया कर आप लोगों को अपनी काबिलियत दिखाने का मौका दें और रही भाषा की बात , वो उन्ही पर छोड़ दें!